दास रघुनाथ का नंद सुत का सखा.२ कुछ इधर भी रहा कुछ उधर भी रहा। सुख मिला श्रीअवध और वृजवास का कुछ इधर भी रहा कुछ उधर भी रहा। मैथिली ने कभी गोद मोदक दिया राधिका ने कभी गोद में लेलिया मातृ सत्कार में मग्न होकर सदा कुछ इधर भी रहा कुछ उधर भी रहा। खूब ली है प्रसादी अवधराज की खूब जूठन मिली मुझको वृजराज की भोग मोहन भी था दूध माखन चखा कुछ इधर भी रहा कुछ उधर भी रहा। उस तरफ द्वार दरवान हूं राज का इस तरफ दोस्त हूं दानी सरताज का सर झुकाता हुआ जर जुटाता हुआ कुछ इधर भी रहा कुछ उधर भी रहा। कोई नर या इधर वा उधर ही रहा कोई नर न इधर न उधर का रहा बिन्दु दोनों तरफ ले रहा हूँ मजा कुछ इधर भी रहा कुछ उधर भी रहा।
संत परम हितकारी जगत में संत परम हितकारी... प्रभु पद प्रगट करावत प्रीति भरम मिटावत भारी। जगत में... संत परम हितकारी... परम कृपालु सकल जीवन पर हरि सम सब दुख हारी। जगत में... संत परम हितकारी... त्रिगुणा तीत फिरत तन त्यागी रीत जगत से न्यारी। जगत में... संत परम हितकारी... ब्रह्मानन्द संतन की सोहवत मिलत ही प्रगट मुरारी। जगत में... संत परम हितकारी...