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संदेश

दास रघुनाथ का

दास रघुनाथ का नंद सुत का सखा.२ कुछ इधर भी रहा कुछ उधर भी रहा। सुख मिला श्रीअवध और वृजवास का कुछ इधर भी रहा कुछ उधर भी रहा। मैथिली ने कभी गोद मोदक दिया राधिका ने कभी गोद में लेलिया मातृ सत्कार में मग्न होकर सदा कुछ इधर भी रहा कुछ उधर भी रहा। खूब ली है प्रसादी अवधराज की खूब जूठन मिली मुझको वृजराज की भोग मोहन भी था दूध माखन चखा कुछ इधर भी रहा कुछ उधर भी रहा। उस तरफ द्वार दरवान हूं राज का इस तरफ दोस्त हूं दानी सरताज का सर झुकाता हुआ जर जुटाता हुआ कुछ इधर भी रहा कुछ उधर भी रहा। कोई नर या इधर वा उधर ही रहा कोई नर न इधर न उधर का रहा बिन्दु दोनों तरफ ले रहा हूँ मजा  कुछ इधर भी रहा कुछ उधर भी रहा।
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संत परम हितकारी

संत परम हितकारी जगत में     संत परम हितकारी... प्रभु पद प्रगट करावत प्रीति  भरम मिटावत भारी। जगत में... संत परम हितकारी... परम कृपालु सकल जीवन पर हरि सम सब दुख हारी। जगत में... संत परम हितकारी... त्रिगुणा तीत फिरत तन त्यागी रीत जगत से न्यारी।  जगत में... संत परम हितकारी... ब्रह्मानन्द संतन की सोहवत मिलत ही प्रगट मुरारी। जगत में... संत परम हितकारी...

गणराज तुम्हारी आरती होवे

शिवनंदन दीनदयाल हो तुम गणराज तुम्हारी जय होवे महाराज तुम्हारी जय होवे, इक छत्र तुम्हारे सिर सोहे  एकदंत तुम्हारा मन मोहे, शुभ लाभ सभी के दाता हो  गणराज तुम्हारी जय होवे, शिव नंदन दीन दयाल हो तुम...... ब्रम्हा बन कर्ता हो तुम ही  विष्णु बन भर्ता हो तुम ही, शिव बन करके संहार हो तुम  गणराज तुम्हारी जय होवे, शिव नंदन दीन दयाल हो तुम...... हर डाल में तुम हर पात में तुम  हर फूल में तुम हर मूल में तुम, संसार में बस एक सार हो तुम  गणराज तुम्हारी जय होवे, शिव नंदन दीन दयाल हो तुम....

आओ आओ गजानन

आओ आओ जी गजानन आओ नैवेद्य का भोग लगाओ आप भी आना संग गौरा जी को लाना नैवेद्य को अमृत बनाओ नैवेद्य को भोग लगाओ we

पकड़लो हाँथ रघुराई

पकड़लो बांह रघुराई, नहीं तो डूब जाएंगें। डगर ये अगम अनजानी, पथिक मैं मूढ़ अज्ञानी। सम्हालोगे नहीं राघव, तो सांसे टूट जाएंगे। नहीं वोहित मेरी नौका, नहीं तैराक मैं पक्का।  कृपा का सेतु बन्धन हो, तो प्रभु हम खूब आएंगे।  नहीं है बुद्धि विद्या बल, माया में डूबी मति चंचल। निहारेंगे मेरे अवगुण, तो प्रभुजी ऊब जाएंगे। प्रतीक्षारत है ये राजन, शरण लेलो सिया साजन।  शिकारी चल जिधर प्रहलाद, जी और ध्रुव जाएंगे।

यही तो भजन है

कहीं देख दुखिया दुखी तेरा मन है,  यही तो भजन है2 कोई गिर गया है, मैं कैसे उठाऊं,  उठाने से पहले स्वयं गिर न जाऊं। वो रोता है यदि तेरे मन में रुदन है,  यही तो भजन है2 जरूरी नहीं है तुम्हे ताक न थी।  न बातें करो तुम कभी अर्चना की। दया है तो तन यह भजन का भवन है।  यही तो भजन है2 कहीं एक अंधे को रस्ता दिखाया।  अतिथि को बैठाकर के पानी पिलाया। वो है सन्त राही का सत सत नमन है।  यही तो भजन है2

भए प्रगट कृपाला

भए प्रगट कृपाला दीनदयाला,  कौसल्‍या हितकारी। हरषित महतारी, मुनि मन हारी,  अद्भुत रूप बिचारी ।। लोचन अभिरामा, तनु घनस्‍यामा,  निज आयुध भुजचारी। भूषन बनमाला, नयन बिसाला,  सोभासिंधु खरारी ।। कह दुई कर जोरी, अस्‍तुति तोरी,  केहि बिधि करूं अनंता। माया गुन ग्‍यानातीत अमाना,  वेद पुरान भनंता ।। करूना सुख सागर, सब गुन आगर,  जेहि गावहिं श्रुति संता। सो मम हित लागी, जन अनुरागी,  भयउ प्रगट श्रीकंता ।। ब्रह्मांड निकाया, निर्मित माया,  रोम रोम प्रति बेद कहै । मम उर सो बासी, यह उपहासी,  सुनत धीर मति थिर न रहै ॥ उपजा जब ग्याना, प्रभु मुसुकाना,  चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै । कहि कथा सुहाई, मातु बुझाई,  जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै ॥ माता पुनि बोली, सो मति डोली,  तजहु तात यह रूपा । कीजै सिसुलीला, अति प्रियसीला,  यह सुख परम अनूपा ॥ सुनि बचन सुजाना, रोदन ठाना,  होइ बालक सुरभूपा । यह चरित जे गावहिं, हरिपद पावहिं,  ते न परहिं भवकूपा ॥ दोहा: बिप्र धेनु सुर संत हित, लीन्ह मनुज अवतार। निज इच्छा निर्मित तनु, माया गुन गो पार॥