दास रघुनाथ का नंद सुत का सखा.२
कुछ इधर भी रहा कुछ उधर भी रहा।
सुख मिला श्रीअवध और वृजवास का
कुछ इधर भी रहा कुछ उधर भी रहा।
मैथिली ने कभी गोद मोदक दिया
राधिका ने कभी गोद में लेलिया
मातृ सत्कार में मग्न होकर सदा
कुछ इधर भी रहा कुछ उधर भी रहा।
खूब ली है प्रसादी अवधराज की
खूब जूठन मिली मुझको वृजराज की
भोग मोहन भी था दूध माखन चखा
कुछ इधर भी रहा कुछ उधर भी रहा।
उस तरफ द्वार दरवान हूं राज का
इस तरफ दोस्त हूं दानी सरताज का
सर झुकाता हुआ जर जुटाता हुआ
कुछ इधर भी रहा कुछ उधर भी रहा।
कोई नर या इधर वा उधर ही रहा
कोई नर न इधर न उधर का रहा
बिन्दु दोनों तरफ ले रहा हूँ मजा
कुछ इधर भी रहा कुछ उधर भी रहा।
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