शंकर तेरी जटा में बहती है गंग धारा
काली घटा के अंदर चिमदामिनी उजाला
गल मुंडमाल राजे शशिभाल पे विराजे
डमरू निनाद बाजे कर में त्रिशूल धारा
मृग चर्म वसन धारी वृषराज की सवारी
निज भक्त दुख हारी कैलाश में विहारा
दृग तीन तेज कटी बंध नाग पांसी
गिरजा हैं संग राजे हैं विश्व के अधारा
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