राजा राम आइये प्रभु राम आइये
मेरे भोजन का भोग लगाइये।
आचमनी अर्घा न आरती यहां मेहमानी
रूखी सूखी खाओ प्रेम से पियो नदी का पानी। राजाराम आइये…
भूल करोगे यदि तज दोगे भोजन रूखे सूखे।
एकादशी आज मंदिर में बैठे रहोगे भूखे। राजाराम आइये…
जब जंगल में भक्त ने किन्हीं करुण पुकार
तबही ता क्षण में प्रगट भयो राम दिव्य दरबार।
मोते नहीं बनत बनाये भोजन आपहु बनाओ अपने।
बहुत दिनन तक पाए, मोते नहीं बनत बनाये।
तुम नहीं तजत सुबानी आपनी हम केते समुझाए।
नर नारिन की कौन कहे, बानर भी संग ल्याए।
मोते नहीं बनत बनाये..
श्रीभरत जी भंडारे बनाने लगे, चुनके लकड़ी लखन लाल लाने लगे।
पोछते पूंछ ते आंजनेय चौका को, और हांथों से बूता लगाने लगे।
इत चौके चूल्हे इधर साग शत्रुघ्न अमनिया कराने लगे।
श्रीभरत जी भंडारे बनाने लगे…
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