मेरा गोपाल गिरधारी जमाने से निराला है।
रंगीला है रसीला है न गोरा है न काला है।।
कभी सपनों में आ जाना कभी रूपोस हो जाना। यह तरसाने का मोहन ने निराला ढंग निकाला है।।
मजे से दिल में आ बैठो मेरे नैनों में बस जाओ।
अरे गोपाल मंदिर यह तुम्हारा देखा भाला है।।
कभी ऊखल से बंध जाना कभी ग्वालों में जा खेले।
तुम्हारी बाल लीला ने अजब धोखे में डाला है।।
कभी वह रूठ जाता है कभी वह मुस्कुराता है।
इसी दर्शन के खातिर तो बड़े नाजों से पाला है।।
तुम्हें मैं भूल तो जाऊं मगर भूले नहीं बनता।
तुम्हारी सांबरी सूरत ने कुछ जादू सा डाला है।।
तुम्हें मुझ से हजारों हैं मगर मेरे तुम ही तुम हो।
तुम्ही सोचो हमारी और कौन सुनने ही वाला है।।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें