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फ़रवरी, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

पकड़लो हाँथ रघुराई

पकड़लो बांह रघुराई, नहीं तो डूब जाएंगें। डगर ये अगम अनजानी, पथिक मैं मूढ़ अज्ञानी। सम्हालोगे नहीं राघव, तो सांसे टूट जाएंगे। नहीं वोहित मेरी नौका, नहीं तैराक मैं पक्का।  कृपा का सेतु बन्धन हो, तो प्रभु हम खूब आएंगे।  नहीं है बुद्धि विद्या बल, माया में डूबी मति चंचल। निहारेंगे मेरे अवगुण, तो प्रभुजी ऊब जाएंगे। प्रतीक्षारत है ये राजन, शरण लेलो सिया साजन।  शिकारी चल जिधर प्रहलाद, जी और ध्रुव जाएंगे।

यही तो भजन है

कहीं देख दुखिया दुखी तेरा मन है,  यही तो भजन है2 कोई गिर गया है, मैं कैसे उठाऊं,  उठाने से पहले स्वयं गिर न जाऊं। वो रोता है यदि तेरे मन में रुदन है,  यही तो भजन है2 जरूरी नहीं है तुम्हे ताक न थी।  न बातें करो तुम कभी अर्चना की। दया है तो तन यह भजन का भवन है।  यही तो भजन है2 कहीं एक अंधे को रस्ता दिखाया।  अतिथि को बैठाकर के पानी पिलाया। वो है सन्त राही का सत सत नमन है।  यही तो भजन है2

भए प्रगट कृपाला

भए प्रगट कृपाला दीनदयाला,  कौसल्‍या हितकारी। हरषित महतारी, मुनि मन हारी,  अद्भुत रूप बिचारी ।। लोचन अभिरामा, तनु घनस्‍यामा,  निज आयुध भुजचारी। भूषन बनमाला, नयन बिसाला,  सोभासिंधु खरारी ।। कह दुई कर जोरी, अस्‍तुति तोरी,  केहि बिधि करूं अनंता। माया गुन ग्‍यानातीत अमाना,  वेद पुरान भनंता ।। करूना सुख सागर, सब गुन आगर,  जेहि गावहिं श्रुति संता। सो मम हित लागी, जन अनुरागी,  भयउ प्रगट श्रीकंता ।। ब्रह्मांड निकाया, निर्मित माया,  रोम रोम प्रति बेद कहै । मम उर सो बासी, यह उपहासी,  सुनत धीर मति थिर न रहै ॥ उपजा जब ग्याना, प्रभु मुसुकाना,  चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै । कहि कथा सुहाई, मातु बुझाई,  जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै ॥ माता पुनि बोली, सो मति डोली,  तजहु तात यह रूपा । कीजै सिसुलीला, अति प्रियसीला,  यह सुख परम अनूपा ॥ सुनि बचन सुजाना, रोदन ठाना,  होइ बालक सुरभूपा । यह चरित जे गावहिं, हरिपद पावहिं,  ते न परहिं भवकूपा ॥ दोहा: बिप्र धेनु सुर संत हित, लीन्ह मनुज अवतार। निज इच्छा निर्मित तनु, माया गुन गो पार॥

शंकर तेरी जटा में

शंकर तेरी जटा में बहती है गंग धारा काली घटा के अंदर चिमदामिनी उजाला गल मुंडमाल राजे शशिभाल पे विराजे डमरू निनाद बाजे कर में त्रिशूल धारा मृग चर्म वसन धारी वृषराज की सवारी निज भक्त दुख हारी कैलाश में विहारा दृग तीन तेज कटी बंध नाग पांसी गिरजा हैं संग राजे हैं विश्व के अधारा

राजा राम आइये

राजा राम आइये प्रभु राम आइये  मेरे भोजन का भोग लगाइये। आचमनी अर्घा न आरती यहां मेहमानी रूखी सूखी खाओ प्रेम से पियो नदी का पानी। राजाराम आइये… भूल करोगे यदि तज दोगे भोजन रूखे सूखे। एकादशी आज मंदिर में बैठे रहोगे भूखे। राजाराम आइये…  जब जंगल में भक्त ने किन्हीं करुण पुकार तबही ता क्षण में प्रगट भयो राम दिव्य दरबार। मोते नहीं बनत बनाये भोजन आपहु बनाओ अपने। बहुत दिनन तक पाए, मोते नहीं बनत बनाये। तुम नहीं तजत सुबानी आपनी हम केते समुझाए। नर नारिन की कौन कहे, बानर भी संग ल्याए। मोते नहीं बनत बनाये.. श्रीभरत जी भंडारे बनाने लगे, चुनके लकड़ी लखन लाल लाने लगे। पोछते पूंछ ते आंजनेय चौका को, और हांथों से बूता लगाने लगे। इत चौके चूल्हे इधर साग शत्रुघ्न अमनिया कराने लगे। श्रीभरत जी भंडारे बनाने लगे…