हरी की कथा सुनाने वाले,
गोविन्द कथा सुनाने वाले,
तुमको लाखों प्रणाम, तुमको लाखों प्रणाम।
हम भूल रहे थे वन में,
बल खो बैठे थे तन में।
प्रभु राह बताने वाले, यह राज बताने वाले,
तुमको लाखों प्रणाम ॥
लेकर विशयों का प्याला,
जा रहे थे यम के गाला।
अमृत पान कराने वाले, प्रभु सुधा पिलाने वाले,
तुमको लाखों प्रणाम ॥
तुम घट घट अन्तर्यामी,
हम पतित और अभिमानी।
प्रभु दरश कराने वाले, हरी का दरश कराने वाले।
तुमको लाखों प्रणाम ॥
हम पार तेरा क्या पावें,
बस सीस झुका यही गावें।
आत्म ज्ञान कराने वाले, मुक्ति दिलाने वाले,
तुमको लाखों प्रणाम ॥
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