कुछ पल की जिन्दगानी, एक रोज सबको जाना।
बरसों की तू क्यूँ सोचे, पल का नहीं ठिकाना।।
मल मल के तूने अपने तन को है जो निखारा।
इत्रों की खुशबुओं से महके शरीर सारा।।
काया न साथ होगी ये बात न भुलाना…
बरसों की तू क्यूँ सोचे..
मन है हरि का दर्पण मन में इसे बसाले।
करके तू कर्म अच्छे कुछ पुण्य धन कमाले।।
कर दान और धर्म तू प्रभू को अगर है पाना…
बरसों की तू क्यूँ सोचे…
आएगी वो घडी जब कोई न साथ होगा।
कर्मों का तेरे सारे इक इक हिसाब होगा।।
ये सोचले अभी तू फिर वक्त ये न आना…
बरसों की तू क्यूँ सोचे…
कोई नहीं है तेरा क्यूँ करता मेरा मेरा।
खुल जाए नींद जब भी समझो वही सबेरा।।
हर भोर की किरण संग हरि का भजन तू गाना…
बरसों की तू क्यूँ सोचे…
कृपामयी कृपा करो , प्रणाम बार बार है। दयामयी दया करो , प्रणाम बार बार है।। न शक्ति है न भक्ति है , विवेक बुद्धि है नहीं। मलीन दीन हीन हुं , पुण्य शुद्धि है नहीं।। अधीर विश्वधार बीच डूबता शिवे सदा। अशान्ति भ्रांति मोह शोक , राह रोकते सदा।। विपत्तियाँ अनेक अम्बे , आपदा अपार है। कृपामयी कृपा करो , प्रणाम बार बार है।। तुम्हे अगर कहो , कहु कहाँ विपत्ति की कथा। सुने उसे कौन अगर , सुनो न देवी सर्वथा।। सृजन विनास स्वामीनी , समस्त विश्व पालिका। अदृश्य विश्व प्राण शक्ति , एकमेव कालिका।। कठोर तू तथापि भक्त , के लिए उदार है। कृपामयी कृपा करो , प्रणाम बार बार है।। असंख्य हैं विभूतियाँ , अनंत शौर्य शालिनी। अखण्ड तेज राशियुक्त , देवि मुंड मालिनी।। समस्त सृष्टि एक अंश , में प्रखर प्रकाशिका। विवेक दायिका विमोह , पाप शूल नाशिका।। क्षमामयी क्षमा करो , उठी यही पुकार है। दयामयी दया करो , प्रणाम बार बार है।। शिवे विनीत भावना , लिए हुए खड़ा हुआ। चरण सरोज में अबोध , पुत्र है पड़ा हुआ।। कृपामयी सुदृष्टि मां , एकबार तू निहार दे। मिटे रोग ...
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