दो दिन का जग में मेला।
सब चला चली का खेला।।
कोई चला गया कोई जावे।
कोई गठरी बांध सिधावे।।
कोई खड़ा तैयार अकेला।। सब चला चली का मेला…
कर पाप कपट छल माया।
धन लाख करोड़ कमाया।।
संग में चले न एकउ ढेला।। सब चला चली का मेला…
सुत नारि मात पितु भाई।
कोई अंत सहायक नाही।।
फिर भरे क्यों पाप का ठेला।। सब चला चली का मेला…
यह नश्वर सब संसारा।
कर भजन ईश का प्यारा।।
ब्रह्मानंद कहे सुन चेला।। सब चला चली का मेला…
कृपामयी कृपा करो , प्रणाम बार बार है। दयामयी दया करो , प्रणाम बार बार है।। न शक्ति है न भक्ति है , विवेक बुद्धि है नहीं। मलीन दीन हीन हुं , पुण्य शुद्धि है नहीं।। अधीर विश्वधार बीच डूबता शिवे सदा। अशान्ति भ्रांति मोह शोक , राह रोकते सदा।। विपत्तियाँ अनेक अम्बे , आपदा अपार है। कृपामयी कृपा करो , प्रणाम बार बार है।। तुम्हे अगर कहो , कहु कहाँ विपत्ति की कथा। सुने उसे कौन अगर , सुनो न देवी सर्वथा।। सृजन विनास स्वामीनी , समस्त विश्व पालिका। अदृश्य विश्व प्राण शक्ति , एकमेव कालिका।। कठोर तू तथापि भक्त , के लिए उदार है। कृपामयी कृपा करो , प्रणाम बार बार है।। असंख्य हैं विभूतियाँ , अनंत शौर्य शालिनी। अखण्ड तेज राशियुक्त , देवि मुंड मालिनी।। समस्त सृष्टि एक अंश , में प्रखर प्रकाशिका। विवेक दायिका विमोह , पाप शूल नाशिका।। क्षमामयी क्षमा करो , उठी यही पुकार है। दयामयी दया करो , प्रणाम बार बार है।। शिवे विनीत भावना , लिए हुए खड़ा हुआ। चरण सरोज में अबोध , पुत्र है पड़ा हुआ।। कृपामयी सुदृष्टि मां , एकबार तू निहार दे। मिटे रोग ...
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