घनश्याम हमारी सुध लेना
क्यों वृन्दावन को भूल गए।।
तुम जाके द्वारिका में छाए
लौट यहाँ फिर तुम न आए।
जब नहीं आना था मोहना...क्यों प्रीत का नाता जोड़ गए।।
तुमको हम रोज सताती थीं।
माखन का चोर बताती थीं।।
मईया से जा पितवाती थीं।
क्या इसी लिए तुम रूठ गए।।
मधुवन में रास रचाते थे।
वंशी से चित्त चुराते थे।।
नई लीला रोज दिखाते थे... क्या अब रास रचाना भूल गए।।
यह मन माखन की मटकी है।
इसको क्यों सर से पटकी है।।
माखन तो खाया सो खाया... मटकी क्यों तुम फोर गए।।
हम तेरी याद में रोती हैं।
न खाती हैं न सोती हैं।।
हम कौन तुम्हारी होती हैं... सुदामा के घर तुम चले गए।।
आने का वादा तुमने किया।
न तुम आए न पात्र दिया।।
क्यूँ तड़पाते हो मोहना... रस में विष क्यूँ घोल गए।।
कृपामयी कृपा करो , प्रणाम बार बार है। दयामयी दया करो , प्रणाम बार बार है।। न शक्ति है न भक्ति है , विवेक बुद्धि है नहीं। मलीन दीन हीन हुं , पुण्य शुद्धि है नहीं।। अधीर विश्वधार बीच डूबता शिवे सदा। अशान्ति भ्रांति मोह शोक , राह रोकते सदा।। विपत्तियाँ अनेक अम्बे , आपदा अपार है। कृपामयी कृपा करो , प्रणाम बार बार है।। तुम्हे अगर कहो , कहु कहाँ विपत्ति की कथा। सुने उसे कौन अगर , सुनो न देवी सर्वथा।। सृजन विनास स्वामीनी , समस्त विश्व पालिका। अदृश्य विश्व प्राण शक्ति , एकमेव कालिका।। कठोर तू तथापि भक्त , के लिए उदार है। कृपामयी कृपा करो , प्रणाम बार बार है।। असंख्य हैं विभूतियाँ , अनंत शौर्य शालिनी। अखण्ड तेज राशियुक्त , देवि मुंड मालिनी।। समस्त सृष्टि एक अंश , में प्रखर प्रकाशिका। विवेक दायिका विमोह , पाप शूल नाशिका।। क्षमामयी क्षमा करो , उठी यही पुकार है। दयामयी दया करो , प्रणाम बार बार है।। शिवे विनीत भावना , लिए हुए खड़ा हुआ। चरण सरोज में अबोध , पुत्र है पड़ा हुआ।। कृपामयी सुदृष्टि मां , एकबार तू निहार दे। मिटे रोग ...
Very nice bhajan
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